पशु आनुवंशिक प्रभाग

राष्ट्रीय पशु आनुवंशिकी संस्थान ने प्रारंभिक वर्षों में स्वदेशी पशु आनुवंशिक संसाधनों के लक्षण वर्णन, कोशिका आनुवंशिकी का उपयोग और जैव रासायनिक बहुरूपता के अध्ययन पर जोर दिया । प्रारंभिक अनुसंधान परियोजनाओं में गाय, भैंस, भेड़, बकरी, सूअर, और ऊंट के गुणसूत्रों के प्रलेखन के अध्ययन को शामिल किया गया । कोशिका आनुवंशिकी अध्ययनों में असामान्य प्ररूपी और प्रजनन विकारों के गुणसूत्र संबंधी असामान्यताओं पर शोध सम्मिलित किया गया । रोग प्रतिरक्षा आनुवंशिकी और जैव रासायनिक आनुवंशिकी में गाय एरिथ्रोसाइट प्रतिजनक लक्षण, उनके अनुप्रयोग, टाइपिंग अभिकर्मकों की तैयारी और एक राष्ट्रीय रक्त केंद्र के निर्माण हेतु काम सम्मिलित किया । अन्य अध्ययनों में गोजातीय जटिल उतक अनुरूपता प्रतिजन और आनुवंशिक त्रिदोषन प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया, गोजातीय साइटोकिन्स और भक्षकोशिकीय जीन मुख्य हैं ।

पहली पंचवर्षीय समीक्षा समिति (क्यू. आर. टी.) ने राष्ट्रीय पशु आनुवंशिक संस्थान और आईसीएआर-राष्ट्रीय पशु आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो को आईसीएआर-राष्ट्रीय पशु आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो के रूप में विलय करने की सिफारिश की और कोशिकाआनुवंशिकी, रोग प्रतिरक्षा आनुवंशिकी, और आण्विक आनुवंशिकी के क्षेत्र में काम कर रहे सभी वैज्ञानिक पशु आनुवंशिकी विभाग का हिस्सा बन गए जो वर्ष 1996 में स्थापित किया गया । वर्ष 1997 में कोशिका आनुवंशिकी पर कम जोर देते हुए प्रभागीय अनुसंधान की गतिविधियों में एक बड़े परिवर्तन पर ध्यान केंद्रित किया गया । अधिकतर शौध परियोजनायें, आण्विक मार्कर विशेषकर माईक्रोसैटेलाईट्स का उपयोग करते हुए देशी नस्लों की गाय, भेड़, मुर्गी, सुअर और अन्य पशु प्रजातियों में जैव विविधता विश्लेषण और आणविक लक्षण निर्धारण किया है । मायटोकोन्डियल डी.एन. ए. विविधता, मातृ वंश और देशी नस्लों के बीच विकासवादी संबंधों की प्रकृति को समझने के प्रयास में मायटोकोन्डियल डी-लूप मार्कर का उपयोग किया गया । रोग प्रति रक्षा आनुवंशिकी के क्षेत्र में भी विशेष रूप से भारतीय पशुओं में गोजातीय इंटरल्युकिन्स पर सार्थक कार्य जारी रखा गया ।

अभी नव वर्षों में विभिन्न देशीय पशुधन प्रजातियों में दुग्ध मात्रा, दुग्ध रचना, ऊन, मीट, वृद्धि व विकास अनुकूलन, मौसमीय सहनशीलता, रोग-प्रतिरोधक क्षमता जैसी कार्यक्षमता को प्रभावित करने वाली विशेषताओं, अनुक्रम लक्षण निर्धारण और एकल न्युलोटाईड पोलीमारफिज्म की पहचान करने के क्षेत्र में वृह्द प्रगति हुई है । कई बाह्य वित्त पोषित अनुसंधान परियोजनाएं जोकि कार्यान्वयन अधीन हैं जैसे कि भेड़ जीनोमिक्स, गाय जीनोमिक्स, भैंस जीनोमिक्स और रोग प्रतिरक्षा आनुवंशिकी, जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डी. बी. टी.) और राष्ट्रीय कृषि अभिनव कार्यक्रम (एन. ए. आई. पी.) से वित्त पोषित हैं । इस तरह के प्रयास हमारे देशी आनुवंशिक संसाधन व देशी प्रजातियों के जटिल जीनोम व बेहतर उपयोग के लिए अच्छी समझ व अंतरदृष्टि प्रदान करेंगे ।